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संत पीपाजी महाराज के दोहे

【संत पिपानन्दाचार्य के दोहे】

(1)
जो ब्रहमंडे सोई पिंडे, जो खोजे सो पावै।
पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै

(2)
काया देवा काया देवल, काया जंगम जाती।
काया धूप दीप नइबेदा, काया पूजा पाती

(3)
काया के बहुखंड खोजते, नवनिधि तामें पाई।
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो, रामजी की दुहाई

(4)
अनत न जाऊं राजा राम की दुहाई।
कायागढ़ खोजता मैं नौ निधि पाई

(5)
हाथां सै उद्यम करैं, मुख सौ ऊचरै राम।
पीपा सांधा रो धरम, रोम रमारै राम

(6)
उण उजियारे दीप की, सब जग फैली ज्योत।
पीपा अन्तर नैण सौ, मन उजियारा होत

(7)
पीपा जिनके मन कपट, तन पर उजरो भेस।
तिनकौ मुख कारौ करौ, संत जना के लेख

(8)
जहां पड़दा तही पाप, बिन पडदै पावै नहीं।
जहां हरि आपै आप, पीपा तहां पड़दौ किसौ

(9)
कायउ देवा काइअउ देवल काइअउ जंग़म जाती,
काइअउ धूप दीप नई बेदा काइअउ पूजऊ पाती ।

(10)
काइआ बहु खंड खोजते नव निधि पाई,
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो राम की दुहाई

 (11)
रहाउ जो ब्रहमंडे सोई 
पिंडे जो खोजै सो पावै||
पीपा प्रणवै परम ततु है सतिगुरु होई लखावै

(12)
जो ब्रहमंडे सोई पिंडे जो खोजे सो पावै॥
अर्थ:-जो प्रभु पूरे ब्रह्माड मे विद्यमान है, वह मनुष्य के हृदय मे भी उपस्थित है

(13)
पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै॥
अर्थ:-पीपा परम तत्व की साधना करता है, जिसके दर्शन पूर्ण सतिगुरु द्वारा किये जाते है।

(14)
काया देवा काया देवल,काया जगम जाती।
काया धूप दीप नइबेदा,काया पूजा पाती।
काया के बहुखड खोजते,नवनिधि तामे पाई। 
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो, राम जी की दुहाई।
जो ब्रह्मडे सोई पिडे,जो खोजे सो पावे।
पीपा प्रणवै परम तत्त है,सतगुरु होय लखावै।
अर्थ:- मानव की आत्मा में ही ईश्वर का वास होता हैं. उनके भीतर ही ईश्वर और मन्दिर दोनों हैं. मानव शरीर ही चेतन यात्री हैं यही धूप दीप फूल पत्ते तथा यही सच्चे देवता हैं. हम जिन निधियों को संसार में विभिनन जगहों पर खोजते हैं वे हमारे अंदर ही हैं अविनाशी मूल तत्व समस्त ब्रह्मांड भी हमारी देह में ही हैं सतगुरु की कृपा से हम उनका दर्शन पा सकते हैं.

(15)
जीव मार जौहर करै, खातां करै बखाण |
पीपा परतख देख ले, थाळी माँय मसाँण ||
पीपा पाप न कीजियै, अळगौ रहीजै आप |
करणी जासी आपरी, कुण बेटौ कुण बाप ||

संत पीपाजी की शिक्षाएं व दोहे

(16)
अहंकारी पावै नहीं, कितनोई धरै समाध |
पीपा सहज पहूंचसी, साहिब रै घर साध ||

(17)
पीपा के पंजर बस्यो रामानंद को रूप
सर्व अँधेरा मिटी गया, देख्या रतन अनूप
अर्थ:- लोकसंत पीपा जी में अपने गुरु रामानंद जी का स्वरूप बस गया हैं. ऐसा होने से उसके भीतर का अज्ञान रुपी अँधेरा मिट गया हैं और उन्होंने परम तत्व के दर्शन कर लिए. अपने सद्गुरु को पारस रुपी पत्थर तथा स्वयं को लौह मानते हुए आगे कहते हैं.

(18)
लोहा पलट कंचन भया, सतगुरु रामानंद
पीपो पदरज दे सदा, मिटया जगत का फंद
अर्थ:- गुरु के स्पर्श से शिष्य लोहे से स्वर्ण बन गये. उनकी चरणों की धूल से इस दुनियां का फंदा मिट गया. संत पीपा सगुण निर्गुण में कोई भेद नहीं करते उनका मानना हैं कि गुरु जैसा ज्ञान दे उसे बिना किसी भय के ग्रहण करना चाहिए.

(19)
सगुण मीठो खांड सो, निर्गुण कड़वो नीम
पीपा गुरु जो पुरस दे, निर्भय होकर जीम
अर्थ:- सगुण भक्ति तो मीठी खांड की तरह हैं वही निर्गुण तो नीम के कड़वे पत्तों जैसा होता हैं. मगर निर्गुण और सगुण में से गुरु जो पर्स दे उसे बिना किसी भय के स्वीकार कर लेना चाहिए.

(20)
जो ब्रहमंडे सोई पिंडे, जो खोजे सो पावै।
पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै

(21)
काया देवा काया देवल, काया जंगम जाती।
काया धूप दीप नइबेदा, काया पूजा पाती

(22)
काया के बहुखंड खोजते, नवनिधि तामें पाई।
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो, रामजी की दुहाई

(23)
अनत न जाऊं राजा राम की दुहाई।
कायागढ़ खोजता मैं नौ निधि पाई

(24)
हाथां सै उद्यम करैं, मुख सौ ऊचरै राम।
पीपा सांधा रो धरम, रोम रमारै राम

(25)
उण उजियारे दीप की, सब जग फैली ज्योत।
पीपा अन्तर नैण सौ, मन उजियारा होत

(26)
पीपा जिनके मन कपट, तन पर उजरो भेस।
तिनकौ मुख कारौ करौ, संत जना के लेख

(27
जहां पड़दा तही पाप, बिन पडदै पावै नहीं।
जहां हरि आपै आप, पीपा तहां पड़दौ किसौ


【कबीर दासजी के दोहे】

दोहा-1
यही कारण तू जग में आया, वो नही तूने कर्म कमाया,
मन मैला था मैला तेरा, काया मल मल धोय ||

दोहा-2
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान,
शीश कटे जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||

दोहा-3
यह माया की चुह्ड़ी, और चूहड़ा कीजो,
बाप-पूत उरभाय के, संग ना काहो कहे ||

दोहा-4
यह मन ताको दीजिए, सांचा सेवक होय |
सिर ऊपर आरा सहे, तऊ न दूजा होय ||

दोहा-5
ये दुनिया है एक तमाशा, कर नही बंदे किसी की आशा,
कहे कबीर सुनों भाई साधों, सांई भजे सुख होय ||

दोहा-6
बुरा जो देखन मै चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय.
अर्थ-जब मै इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पता चला कि दुनियाँ में मुझसे बुरा कोई अन्य नही है.

दोहा-7
पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े से पंडित होय.
अर्थ-इस संसार में लोग बड़ी बड़ी पुस्तके और ग्रन्थ पढ़-पढ़कर मौत की कगार पर चले गये, मगर उनमे से कोई भी ज्ञानी नही बन सका. कबीरदास के अनुसार जो इंसान प्यार के वास्तविक अर्थ को समझ ले वो ही सच्चा ज्ञानी है पंडित है.

दोहा-8
साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाए.
अर्थ– कबीरदास कहते है कि इस संसार को बुद्धिमान लोगों की आवश्यकता है, जो कार्य एक साधू ही कर सकता है. जिस तरह सूप अनाज को बचाकर बेकार कचरे को उडा देता है.

दोहा-9
तिनका कबहू ना निन्दिये, जो पावन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ||
अर्थ- कबीरदास जी कहते है कि कभी भी किसी छोटे तिनके की भी निंदा मत करो, जब वो तुम्हारे पाँव के नीचे दब जाए. वही तिनका कभी भी उड़कर आपकी आँख में आ गिरे तो भीषण पीड़ा दर्द होता है.

दोहा-10
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतू आए फल होय ||
अर्थ– मन में धीरज रखा जाए तो सब कुछ संभव है. यदि माली एक ही समय में सारा पानी एक समय सींचे तो भी उन्हें फल की प्राप्ति ऋतू आने पर ही होगी. अर्थात उन्हें फल प्राप्ति में समय लगेगा.

दोहा-11
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर ||
अर्थ-यदि कोई इंसान मनके की माला लेकर निरंतर फेरता है तो इससे उसका मन नही बदलता है अर्थात उस व्यक्ति के मन की हलचल खत्म नही होती है. ऐसे इंसान को मनके की माला छोड़कर मन की माला के मनकों को फेरों.

दोहा-12
जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तरवार का पड़ी रहन दो म्यान ||
अर्थ– सज्जन की जाति न पूछकर हमे उनके ज्ञान (शिक्षा) को समझना चाहिए. कीमत तो तलवार की होती है न कि उसे ढकने वाली म्यान की.

दोहा-13
दोस पराए देख करी, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत ||
अर्थ-इसान की यह प्रवृति होती है कि वह दूसरों की कमियों व् दोषों को देखकर हंसता है, मगर उस समय वह अपने भीतर की कमियों की याद ही नही आती, जिनका कोई आदि है न अंत.

दोहा-14
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मै बापुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ||
अर्थ-जो इंसान मेहनत करता है कुछ न कुछ अवश्य ही प्राप्त कर लेता है, जिस प्रकार एक गौताखोर बिना भय से गहरे पानी में उतरकर मोती निकाल ले आता है, दूसरी तरफ कायर लोग मौत के भय से किनारे पर बैठे ही रह जाते है.

दोहा-15
बोलि एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि,
हिये तराजू तौली के, तब मुख बाहर आनी ||
अर्थ– जो इंसान बोली यानि सही बोलने के महत्व को समझता है वह कुछ बोलने से पूर्व अपने ह्रद्य रूपी तराजू से उन्हें तौलकर मुख से बाहर निकालता है.

दोहा-16
अति का भला न बोलना, अति की भलि न चुप,
अति का भला न बरसना, अति की भलि न धूप ||
अर्थ– व्यक्ति को न तो अधिक बोलना अच्छा है और न ही अधिक चुप रहना. कबीर कहते है यह उसी प्रकार पीड़ादायक है जिस प्रकार अधिक मात्रा में बरसात और धूप.

दोहा-17
निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ||
अर्थ-यदि कोई व्यक्ति आपकी निंदा करता है तो उसे रोकिये मत, क्युकि वो तो साबुन और जल के बिना भी आपके स्वभाव को साफ़ कर देता है.

दोहा-18
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पता झड़े, बहुरि न लागे डार |
अर्थ- इस संसार में मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिलता है, यह जीवन उसी प्रकार है, जिस प्रकार एक पेड़ से टुटा पत्ता दुबारा नही जुड़ सकता.

दोहा-19
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ||
अर्थ-कबीरदास जी इस संसार में आकर बस यही चाहते है कि सबका भला हो. यदि किसी से दोस्ती हो न हो मगर दुश्मनी तो बिलकुल न हो.

दोहा-20
हिन्दू कहे मोहे राम प्यारा, तुर्क कहे रहमाना,
आपस में दोनों लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना ||
अर्थ– हिन्दू श्रीराम को अपना भगवान मानते है वही मुस्लिम रहिमन को. मेरा धर्म श्रेष्ट है इसी को लेकर आपस में लड़-लड़कर मर जाते है मगर सत्य को कोई नही जानता है.

दोहा-21
कहत सुनत सब दिन गये, उरझी न सुरझ्या मन,
कही कबीर चेत्या नही, अजहूँ सो पहला दिन ||
अर्थ- कहते सुनते कई दिन निकल गये, मगर यह उलझा हुआ मन अभी तक सुलझ नही पाया. कबीर कहते है कि अब भी यह मन होश में नही आया आज भी यह पूर्व स्थति में बना हुआ है.

दोहा-22
कबीर लहरी समद की, मोती बिखरे आई,
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी चुनी खाई ||
अर्थ-जब झील में मोती बिखर गये है, बगुला मोती और पत्थर में भेद नही कर पा रहा है. वही मोती का पारखी हंस उन्हें चुन चुनकर खा रहा है.

दोहा-23
जब गुण को ग्राहक मिले, तब गुण की लाख बिकाई,
जब गुण को ग्राहक नही, तब कौड़ी के बदले जाई ||
अर्थ- कबीरदास जी कहते है, कि जब गुण का पारखी मिले तो उसकी कीमत लाखों होती है, मगर गुण को ग्राहक नही मिलने पर वह कोड़ियो के भाव बिकता है.

दोहा-24
कबीर कहा गरबियो, काल गहे पर केस,
न जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेश ||
अर्थ- कबीर मानव के नश्वर जीवन के बारे में कहते है, हे इन्सान तुझे अपने जीवन पर इतना गर्व क्यों है. तेरे बाल तो काल के हाथों में फसे हुए है. क्या पता घर या प्रदेश कब तेरि मृत्यु हो सकती है.

दोहा-25
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात,
एक दिन छिप जाएगा, ज्यो तारा प्रभात ||

अर्थ:-
हे मनुष्य ये मानव जीवन पानी के बुलबुले की भांति क्षणभंगुर है. जिस तरह सूर्योदय के साथ ही सारे तारे छिप जाते है उसी प्रकार तेरा जीवन कभी भी समाप्त हो सकता है.


【 नीतिगत दोहे 】

1-दोहा
धरम धरम सब एक हैं, पण वरताव अनेक |
ईश् जाणनों धरम हैं, जिरो पन्थ विवेक ||

अर्थ:- इस संसार में अनेक धर्म हैं, उन सबका व्यवहार भी अलग-अलग हैं. लेकिन प्रत्येक धर्म का मूल उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति हैं. ईश्वर को जानने का मुख्य मार्ग ज्ञान हैं. व्यक्ति सच्चे ज्ञान के द्वारा ईश्वर को जान सकता हैं प्राप्त कर सकता हैं.

2-दोहा
पर घर पग नी मैल्यो, वना मान मनवार |
अंजन आवै देख नै, सिंगल रो सतकार ||

अर्थ:- जिस घर में मान-सम्मान नही मिले उस घर में कभी कदम नही रखना चाहिए. व्याहारिक जीवन में देखा जाता हैं,कि रेलवे स्टेशन पर सिग्नल दिखाई नही देता हैं तो इंजन स्टेशन पर नही आता हैं. रेल आने से पूर्व स्टेशन मास्टर सिंग्नल लगाता हैं,जिसे देखकर इंजन प्रवेश करता हैं. जिस प्रकार सिग्नल इंजन का सम्मान हैं तब ही स्टेशन पर आता हैं.

3-दोहा
रेठ फरै चरक्यो फरै, पण फरवा में फेर
वो तो वाड़ हर्यौ करै, यों छुंता रो ढेर ||

अर्थ:- कुए से पानी निकालने के लिए रहट वैली का उपयोग किया जाता हैं, यह यंत्र उपर से जल की सतह तक जाता हैं. फिर पानी छोटी-छोटी बाल्टियो में भरकर स्वय उपर आता हैं. इसी जल से सिंचाई की जाती हैं, जिससे खेत हरे भरे हो जाते हैं. यह रहट उपर निचे फिरता रहता हैं. इसी प्रकार गन्ना पेरने की चरखी गन्नो के बिच दबकर फिरती हैं. गन्ने का रस निकालकर पात्र में रख देती हैं. तथा छिलकों को निकालकर एक तरफ ढेर निकाल देती हैं, कहने का मतलब यह हैं ,कि रहट और चरखी दोनों उपकरण फिरते हैं परन्तु दोनों के फिरने की क्रिया में अंतर हैं.

4-दोहा
कारट तो केतो फरै, हरकीनै हकनाक |
जीरी व्हे विन्नै कहै, हियै लिफाफों राख ||

अर्थ:- एक स्थान से दुसरे स्थान पर पत्र भेजने के लिए पोस्टकार्ड और लिफाफे बेहद लोकप्रिय थे. और आज भी हैं. परन्तु व्यवहारिक द्रष्टि से पोस्टकार्ड द्वारा भेजा गया संदेश कोई भी पढ़ सकता हैं. इस कारण इससे संदेश की गोपनीयता नही रहती हैं. क्युकि जिसे हम संदेश देना चाहते हैं. वही पढ़ सकता हैं.

5-दोहा
वी भटका भोगै नही, ठीक समझले ठौर |
पग मेल्या पेला करे, गैला उपर गौर ||

अर्थ:- जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए समझदारी के साथ-साथ सोच समझकर कार्य करना चाहिए. बिना कुछ कार्य के इधर-उधर भटकने से कुछ भी प्राप्त नही होता हैं. इसलिए हमे स्थान के बारे में पहले से ही अच्छी तरह समझ लेना चाहिए. जैसे किसी राह में चलने से पूर्व रास्ते की जानकारी पता कर लेनी चाहिए. इससे मार्ग की कठिनाइयो का पता चल जाता हैं.

6-दोहा
क्यूं किसू बोलू कठे, कुण कई की वार |
ई छै वाता तोल नै, पछै बोल्नो सार ||

अर्थ:- इस संसार में व्यवहार करने के लिए हमे बातचीत एक दुसरे से करनी पड़ती हैं, परन्तु बोली एक अमूल्य वस्तु हैं किकिससे कब और कहा क्या बोलना हैं. किसको कब किनती आदि बातों को अपने ह्रदय में पहले से ही तोल लेनी चाहिए. इन बातों के सार को ही कहना चाहिए. निर्थक बाते करने से कोई फायदा नही हैं.

7-दोहा
ओछो भी आछो नही, वतो करै कार |
देन्णों छावै देखनै , अगनी मुजब अहार ||

अर्थ:- जीवन में किसी वस्तु की सार्थकता या आवश्यकता पर्याप्तता होने पर ही होती हैं. यदि आवश्यकता से कम हैं या अधिक हैं तो उसका विशेष महत्व नही होता हैं. आग को जलती रखने के लिए उसमे आवश्यकता के अनुसार इंधन डालते रहना चाहिए. यदि आवश्यकता से कम ईंधन डालेगे तो आग बुझ जाएगी. आवश्यकता से अधिक डालेगे तो भी वह बुझ जाएगी.

8-दोहा
अपणी आण अजाणता, कईक कोरा जाय |
समझदार समझे सहज, आँख इशारा माय ||

अर्थ:- इस संसार में बहुत से लोग हैं जो अपनी इज्जत मान-मर्यादा और योग्यता के सम्बन्ध में अनजान रहते हैं. ऐसे बहुत से व्यक्ति व्यर्थ में अपनी जिन्दगी बिताते हैं. समझदार व्यक्ति बहुत जल्दी संकेत के रूप में सारी बात समझ जाते हैं. कि कौन कैसे उसका सम्मान और अपमान करता हैं.

9-दोहा
क्षमा क्षमा सब ही करे, क्षमा न राखे कौय |
क्षमा राखिवै तै कठिन, क्षमा राखिवौ होय ||

अर्थ:- इस संसार में सभी व्यक्ति क्षमा के बारे में कहते हैं. अर्थात मनुष्य को क्षमा करने की भावना व क्षमा शीलता का गुण रखना चाहिए. पर व्यवहार में कोई भी व्यक्ति क्षमा या धैर्य नही रखता हैं. क्षमा करने की भावना कठिन धैर्य रखने की क्षमता हैं. अर्थ यह हैं कि धेर्य रखना क्षमा करने से अधिक महत्वपूर्ण हैं. अर्थात क्षमा के पात्र व्यक्ति के गुण दोषों के बारे में चिन्तन आवश्यक हैं.

10-दोहा
विद्या विद्या वेळ जुग, जीवन तरु लिपटात |
पढीबौ ही जल सिंचिबौ, सुख दुःख को फल पात ||

अर्थ:- विद्या और युग रूपी बेल जीवन रूपी वृक्ष के चारों और लिपटे रहते हैं. लगातार पढने यानि ज्ञान रूपी जल से जीवन रूपी वृक्ष की सीचना चाहिए. जीवन रूपी वृक्ष को सिचने से ही सुख दुःख रूपी फल और पत्ते प्राप्त किए जा सकते हैं.

11-दोहा
रेल दौड़ती ज्यू घणा, रुंख दोड़ता पेख |
तन नै जातो जाण यूँ, दन नै जातो देख ||

अर्थ:- जब रेलगाड़ी दौड़ती हैं तो हम वृक्षों को दोड़ता हुआ देखते हैं. उसी प्रकार जीवन में समय और दिन जाते हुए देखते हैं. हम समझते हैं, दिन जा रहा हैं वर्ष जा रहा हैं. परन्तु हमे यह सोचना चाहिए, कि दिन व वर्ष नही जा रहे हैं. बल्कि हमारा नश्वर शरीर धीरे-धीरे नष्ट हो रहा हैं.

12-दोहा
गाता रोता निकलया, लड़ता करता प्यार |
अणि सड़क रै उपरे, अब लख मनख अपार |

अर्थ:- हमने इस संसार में गोते रोते हुए जन्म लिया और एक दुसरे से लड़ते झगड़ते प्यार से जीवन जिया. इसी प्रकार संसार रूपी सड़क पर अनगिनत मनुष्य जीवन जीते हैं,

13-दोहा
गोख्दिया खड़िया रया, कड़ियाँ झांकणहार |
खडखडिया पड़िया रया, खड़िया हाकनंहार ||

अर्थ:- उचे-ऊँचे भवन के गोख्ड़े झरोखे तथा सड़क पर चलने वाले तांगे आदि सभी पड़े रह जाते हैं. किन्तु तांगा चलाने वाला चला जाता हैं. उसी प्रकार शरीर से आत्मा तो चली जाती हैं, लेकिन शरीर यही रह जाता हैं.

14-दोहा
गेला नै जातो कहै, जावै आप अजाण |
गेला नै रवै नही, गेला री पेछाण ||

अर्थ:- इस संसार में कुछ व्यक्ति स्वय अज्ञानी हैं. तथा दुसरो को भी मुर्ख बनाते हैं. एक मुर्ख जाते हुए एक व्यक्ति से कहता हैं. कि वह मुर्ख हैं क्युकि वह सही मार्ग पर नही जा रहा हैं. जबकि आप स्वय जानकार होते हुए भी गलत मार्ग पर जा रहे हैं. वह व्यक्ति गलत मार्ग पर इसलिए जा रहा हैं, क्युकि उन्हें सही राह की पहचान नही हैं. परन्तु खेद तो यह हैं अपने आप को ज्ञान वाँ मानकर गलत राह पर जा रहे हैं.

15-दोहा
धन दारा रै मायने, मती जमारो खोय |
वणी आणि रा वगत में, कूण कणी रा होय ||

अर्थ:- कवि सांसारिक मनुष्यों को चेतावनी देते हुए कह रहा हैं, कि इस समय संसार में धन-सम्पति पत्नी के बिच रहकर अपना जीवन मत खोवो. कुछ समय भगवान् का भी स्मरण करो. क्युकि कठिन समय में कोई भी व्यक्ति किसी का साथ नही देता हैं.



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